Tuesday, July 26, 2011

"म्यर उत्तराखण्ड ग्रुप संस्था" 14 अगस्त 2011 को गैरसैण (चंद्रनगर) राजधानी की मांग को लेकर गैरसैण में शांतिपूर्ण धरना एवं जनजागरण रैली |

मान्यवर,
भारतीय सभ्यता, संस्कृति और आध्यात्म की जो गंगा हमारे उत्तराखंड से प्रवाहित होती है, वह पूरे देश को एकता, भाईचारे, सौहार्द और सहकारिता के दर्शन का संदेश देती है पौराणिक काल से ज्ञान कि यह धरती अपनी अबाध यात्रा में एक संस्कृति, कालखंड और सभ्यता के साथ साथ जिस तरह आगे बढ़ी है उसने हम सबके लिए प्रेरणा और आगे बढ़ने के संकल्पों को मजबूत किया है इतिहास में मानसखंड और केदारखंड से कत्यूरी, चंद, गोरखा और पंवार राजाओं के शासन से होता हुआ पहाड़ जब अंग्रेजों के हाथो में आया तो प्रशासनिक दृष्टि से भले ही स्थितियां बदली हों, लेकिन यहाँ का सांस्कृतिक स्वरुप ऐसे ही बना रहा हमने इतिहास से बहुत कुछ सीखा राष्ट्रीय निर्माण में इस क्षेत्र के लोगों की अग्रणी और केन्द्रीय भूमिका रही आजादी के आन्दोलन में सालम, सल्ट, देघाट क्रांतियों के अलावा टिहरी रियासत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ तिलाडी के मैदान में लोगों ने अपनी शहादत दी बागेश्वर के कुली बेगार आन्दोलन ने चेतना का नया फलक तैयार किया वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने पेशावर में अंग्रेजों के हुक्म के खिलाफ जाकर पठानों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया यह भारतीय इतिहास में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की नयी मिसाल बनाटिहरी में श्रीदेव सुमन, मोलू राम भरदारी और नागेन्द्र सकलानी की शहादतों ने इस क्षेत्र की जनता को स्वाभिमान के साथ खड़े होने का साहस और प्रेरणा दी माधो सिंह भंडारी ने अपने पुत्र की बलि देकर जन सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध सामाजिक संघर्ष का रास्ता दिखाया इसी धरा से कुमाऊ केसरी बद्रीदत्त पांडे, विक्टर मोहन जोशी, हरगोबिन्द पंत, गढ़केसरी अनुसूया प्रसाद बहुगुणा, जयानंद भारती, रामसिंह धौनी जैसे सपूतों ने राष्ट्रीय आन्दोलन को नई दिशा दी आजादी के बाद भी यहाँ सामाजिक जनांदोलनो की चेतना का प्रवाह रुका नहीं सत्तर के दशक में यहाँ जनता के हक़ हकूकों के आन्दोलन ने नए तरह के उत्तराखंड के बारे में सोचना शुरू किया इसी दौरान चिपको आन्दोलन, आपातकाल के खिलाफ युवाओं का विरोध, नशा नही रोजगार दो आन्दोलन, भ्रष्टाचार के खिलाफ कनकटे बैल को लाकर राजधानी दिल्ली में प्रदर्शन, वन अधिनियम के खिलाफ बड़ा आन्दोलन |

तराई में जमीनों की लड़ाई के अलावा कई ऐसे पडाव आये, जब हमारे पहाड़ की जनता ने अपने हकों को संबैधानिक तरीके से माँगा इस बीच लोगों को लगा कि बिना अलग राज्य बने यहाँ की समस्याओं का समाधान नहीं होगा, तो तीन दशक तक उत्तराखंड राज्य आन्दोलन चला 30 साल के संघर्ष के बाद उत्तराखंड राज्य भी मिल गया 42 लोगों की शहादत और सरकारी दमन के खिलाफ सड़कों पर संघर्षरत रही जनता ने जिस राज्य का सपना देखा था वह पूरा नहीं हुआ जिन समस्याओं को लेकर अलग राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी वही समस्याएं आज भी पहाड़ में, पहाड़ की तरह यथावत खडी है उत्तराखंड के लिए सरकार कोई ऐसी नीति नहीं बना पाई जिस से वहां से पलायन रुके और वहां बेरोजगारों को रोजगार मिले जल, जंगल, जमीन पर लोगों का अपना अधिकार हो हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर मुनाफाखोरों का शिकंजा कसता चला जा रहा है नदियों को बड़ी कंपनियों के हवाले कर सरकार ने जिस ऊर्जा प्रदेश का सपना देखा है उससे यहाँ के गाँव पलायन करने को मजबूर हैं अलग राज्य बनने के बाद भी यहाँ के लगभग 15 लाख लोग पहाड़ छोड़ चुके हैं पौने दो लाख घरों में ताले पड़े हैं अब नई तरह की बेचैनी जनता में है वह है अपनी आकांक्षाओ, सपनो का राज्य बनानाअभी भी आन्दोलनों का दौर थमा नहीं, आज भी यहाँ की जनता अपने हक़ हकूकों के लिए आंदोलनरत है चाहे बांधों के खिलाफ प्रदर्शन, जल, जंगल, जमीन या फिर राजधानी गैरसैण आन्दोलन हो जैसा कि आपको विदित है उत्तराखण्ड राज्य को बने 11 साल होने को है और इन 11 सालों में 5 मुख्यमंत्री बदल गए कभी कांग्रेस कभी बीजेपी दोनों सत्ता बदलते रहे और अस्थाई राजधानी देहरादून से ही अपना शासन चलाते रहे मगर अपने इस कार्यकाल के दौरान किसी भी सरकार ने स्थाई राजधानी बनाने की जहमत नहीं उठाई। हिन्दुस्तान के इतिहास में उत्तराखण्ड एकलौता ऐसा प्रदेश है, जिसकी राजधानी 11 सालों तक अस्थाई है। 11 वर्षो से स्थाई राजधानी का हवा में तैरता सवाल और उसके बीच राजनेताओं का रवैया, उत्तराखंड की जनता को निराश करने वाला रहा है। राज्य के बुद्धिजीवियों, हितचिंतकों, भूगोलवेत्ताओं, अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों ने पूरी समझ और शोध के बाद ही तय किया था कि यदि उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तो इसकी राजधानी के लिये गैरसैण से अधिक उपयुक्त स्थान कोई नहीं है। संदर्भ तो यहाँ तक बताते है कि वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प. जवाहर लाल नेहरू ने आश्वासन दिया था कि गैरसैंण को देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की संभावनाओं की तलाश की जायेगी। दुर्भाग्य से यह योजना पं. नेहरू के बाद ही गायब हो गई। सन् 1994 में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उत्तराखंड राज्य गठन हेतु रमा शंकर कौशिक समिति का गठन किया गया और इस समिति ने उत्तराखंड राज्य का समर्थन करते हुए 5 मई 1994 को अपनी संस्तुति राज्य सरकार को दी। इस समिति ने पर्वतीय क्षेत्र में स्थान-स्थान पर जाकर लोगों के सुझाव लिए। कुमाऊ एवं गढ़वाल के मध्य स्थित गैरसैंण (चंद्रनगर) नामक स्थान पर राजधानी बनाने की संस्तुति दीउस समिति की रिपोर्ट के मुताबिक गैरसैंण को 60.21 फ़ीसदी अंक मिले थे, जबकि नैनीताल को 3.40, देहरादून को 2.88, रामनगर-कालागढ़ को 9.95, श्रीनगर गढ़वाल को 3.40, अल्मोड़ा को 2.09, नरेंद्रनगर को 0.79, हल्द्वानी को 1.05, काशीपुर को 1.31, बैजनाथ-ग्वालदम को 0.79, हरिद्वार को 0.52, गौचर को 0.26, पौड़ी को 0.26, रानीखेत-द्वाराहाट को 0.52 फीसद अंक मिलने के साथ ही किसी केंद्रीय स्थल को 7.25 फीसद अन्य को 0.79 प्रतिशत ने अपनी सहमति दी थी। गैरसैंण के साथ ही केंद्रीय स्थल के नाम पर राजधानी बनाने के पक्षधर लोग 68.85 फीसद थे। उस रिपोर्ट में गैरसैंण (चन्द्रनगर) को राजधानी के लिये सबसे उपयुक्त माना। कौशिक समिति की संस्तुति पर 24 अगस्त 1994 को उत्तर प्रदेश विधानसभा ने उत्तराखंड राज्य बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया। राज्य बनने के बाद भी वह दुर्भाग्य गया नहीं है। देश की तो दूर, गैरसैंण को राज्य की राजधानी न बनाने के लिये कितने कुतर्क, षड़यंत्र और खेल खेले गए और खेले जा रहे हैं। उत्तराखंड की प्रथम सरकार नित्यानंद स्वामी की अगुवाई में बनी, उनकी सरकार ने राजधानी गैरसैण (चंद्रनगर) के नाम पर एक राजनैतिक षड़यंत्र के तहत दीक्षित आयोग नाम की एक समिति गठित कर हमारे ऊपर थोप दिया और दीक्षित आयोग ने 11 बार अपना कार्यकाल बढ़ने के बाद वही रिपोर्ट दी जिसकी वहां की जनता को पहले ही संभावना प्रतीत हो रही थीगैरसैण के विरोध में, और देता भी क्यों नहीं ? क्योंकि दीक्षित आयोग का गठन ही गैरसैण को राजधानी न बनाने के लिए किया गया था जब कौशिक समिति पहले ही पूरी जांच पड़ताल और सर्वेक्षण के बाद अपना तर्क गैरसैण के पक्ष में दे चुकी थी, तो दोबारा आयोग क्यों गठित किया गया? दरअसल में गैरसैण (चंद्रनगर) नाम का यह स्थान उत्तराखण्ड की राजनैतिक चौसर बन गया है जिस पर सभी पार्टियाँ अपनी-अपनी गोटियाँ फिट कर रही हैं। गजब की बात यह है कि इस चौसर में सब के सब शकुनि हैं, और किसी भी प्रकार से इस मुद्दे को उलझाये रखना चाहते हैं। गैरसैंण को राजधानी न बनाने के लिये उन्होंने कुतर्क गढ़ने भी शुरू कर दिये। राजधानी के बारे में वे लोग भी तर्क देने लगे जिन्हें यहां का भूगोल पता नही है। जिन लोगों ने कभी गैरसैंण देखा नहीं वे भी उसके विरोध में बयान देने लगे। सरकार भी बार-बार लोगों का ध्यान इससे हटाने लगी। गैरसैंण के विरोध में वो लोग हैं, जो न आन्दोलन में थे और न उनकी कही आन्दोलन में भूमिका रही थी राज्य आन्दोलन वहां की जनता ने छोटे छोटे तबकों में एकजुट होकर लड़ा था। आज जो भी लोग सत्ता में बैठे हैं और बैठते हुए आये हैं, राजधानी के नाम पर मौनीबाबा बने सत्ता सुख भोग रहे हैं, वही लोग उत्तराखंड राज्य विरोधी थेआज राज्य बनाने का सेहरा अपने सिर पर कोई भी राजनीतिक पार्टी बांधे। मगर यही सत्य है, जब 1994 में आन्दोलन को पहाड़ की भोली-भाली, गरीब जनता निर्णायक दौर में ले गई थी, तो ये सत्ता के लालची, स्वार्थी लोग अपने वातानुकूलित कोठियों, घरों से निकलकर बाहर आये, और आन्दोलन को हाईजेक करके उसपर अपनी राजनीति की रोटियाँ सेकने लगे, और शायद पहाड़ की जनता ने भी राज्य के लिए 42 लोगों की शहादत और राजधानी गैरसैण (चंद्रनगर) के लिए बाबा मोहन उत्तराखंडी की शहादत को भुला दिया हैराजधानी गैरसैंण घोषित करने को लेकर 38 दिनों तक आमरण अनशन करने के बाद बाबा मोहन उत्तराखंडी शहीद हुए थे म्यर उत्तराखंड ग्रुप उत्तराखंड के उन युवा/युवतियों की संस्था है जो भूमंडलीकरण के दौर में भी पहाड़ के नवनिर्माण की सोच रखती है पिछले 5 वर्षों से प्रवास में अलग-अलग व्यवसाय से जुड़े इस नई पौध ने पहाड़ को अपने नजरिये से देखा है संचार के इस युग ने दुनिया को बहुत छोटा कर दिया है इन्टरनेट वेबसाइट के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े ये नौजवान अब अपने सपनो को जमीनी हकीकत में बदलना चाहते हैंम्यर उत्तराखंड' ग्रुप सोसाएटी उन सरोंकारों से जुड़कर अपना योगदान करना चाहता है जिसकी वहां जरुरत है संस्था विभिन्न कार्यकर्मों के माध्यम से हमेशा उत्तराखंड की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक और नियोजन सम्बन्धी तमाम सवालों को उठाती आ रही है, और वैचारिक आन्दोलन की हिमायत भी संस्था करती रही है समय-समय पर उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजोने में और पुरानी पीढ़ी की विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने और सहेजने का आयोजन भी कर रही है पहाड़ से बाहर रह रहे युवाओं को अपनी जड़ों से जुड़े रहने और विभिन्न गतिविधियों से पहाड़ को जानने-समझने का प्रयास भी हम कर रहे हैं हम इस छोटी सी कोशिश से उत्तराखंड की सम्पूर्ण धरोहर, सांस्कृतिक एकता, सामाजिक मूल्यों को अक्षुण रखने एवं अपनी परम्परा और आर्थिक रूप से संपन्न पहाड़ की कल्पना को साकार करने में सहभागी बनना चाहते हैं म्यर उत्तराखंड' संस्था अपनी सभ्यता, संस्कृति और इतिहास से प्रेरणा लेकर खुशहाल उत्तराखंड का सपना देखती है हमारे अग्रजों, बुद्धिजीवियों का अनुभव और हमारा उत्त्साह एक सार्थक पहल से आगे बढ़ सकता है इसी उद्देश्य और आगे बढ़ने के संकल्प के साथ युवाओं ने अपने कदम बढ़ाये हैं

लोकतंत्र में वोट का गणित भले ही नीतिकारों का चयन करता हो, लेकिन जनता यदि अपने हक़-हकूकों के लिए ताकत के साथ खडी होती है तो परिवर्तन बहुत कठिन काम नहीं है। 'म्यर उत्तराखण्ड ग्रुप' शहीदों को भावभीनी श्रद्दांजलि देते हुए `म्यर उत्तराखंड' मंच के माध्यम से राज्य के आन्दोलनकारियों और शहीदों की भावना के अनुरुप गैरसैंण (चन्द्र नगर) को उत्तराखण्ड की स्थायी राजधानी के रुप में देखना चाहता हैं। और राजधानी गैरसैंण (चन्द्र नगर) के लिए जनांदोलन की घोषणा करता हैंआन्दोलन का शुरुआत `म्यर उत्तराखंड' ग्रुप 14 अगस्त रविवार, स्वतंत्रता दिवस से एकदिन पहले गैरसैंण (चन्द्र नगर) में जनसभा और शान्ति पूर्ण धरना देकर करेगा| समस्त उत्तराखंड की जनता, आन्दोलनकारियों, सामाजिक संगठनो, जनसरोकारों, पत्रकारिता से जुड़े लोगों, वरिष्ठ नागरिको एवं बुद्धिजीवियों से अनुरोध करता है कि इस मुहिम में सभी एकजुट होकर साथ चलें, एकता में ही शक्ति है, वक्त आ गया है एकबार फिर से 1994 का इतिहास दोहराने का|

गैरसैंण हमारे लिये मात्र प्रस्तावित राजधानी ही नहीं है, यह हमारे शहीदों का सपना है, गैरसैंण हमारे उत्तराखण्ड के लोगों के लिये मात्र जगह नही है, गैरसैंण हमारे आन्दोलनकारियों का सपना है, हमारी भावना है, एक विचार है, एक सपना है क्योंकि जब उत्तराखण्ड आन्दोलन हुआ था तो हमारे आन्दोलनकारियों ने सोच-विचार कर गैरसैंण को अपने प्रस्तावित राज्य की राजधानी घोषित कर दिया थाजो पूरे राज्य की जनता में सर्वमान्य भी हुआ पहाड की राजधानी यदि पहाड में नहीं होगी तो इससे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण बात और क्या हो सकती है जो नीति नियोक्ता है, उन्हें पहाड की जानकारी नही हो़गी और वे पहाड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों से परिचित ही नहीं होंगे, तो वे पहाड के लिये क्या नीति बना सकते हैं ? हम सरकार से मांग करते हैं कि शीघ्र ही गैरसैंण को उत्तराखण्ड की स्थाई राजधानी घोषित की जाय |

जय भारत! जय उत्तराखण्ड!

धन्यवाद
म्यर उत्तराखण्ड ग्रुप
एवं समस्त कार्यकारणी